पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२७९

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२४९ देखि तुम्हारी दया दयामय ईसहु तुम पर। दया कियो दै दियो राज लिबरल दल के कर॥ ऊपर। कलियुग कँह बहु लोग कहत करजुग इमि प्यारे। साँझ समय जो देय सोई पुनि लहै सकारे॥ करहु दया औरहु भारत पर औ फल पाओ। बृटिश राज पर सदा तुमहिं सब हुक्म चलाओ॥ मिस्टर ग्लैडस्टन वजीर आज़म है गाज। लिबरल दल की राजसभा में विजय बिराजै॥ दया आपकी रहै सदा भारत के भारत भूमी पैं बरसैं सुख सलिल निरन्तर॥ यह देत आसीस तुमैं हम प्रसन्न मन। सत्य करै जगदीश सचिदानन्द दया घन ॥ ए भाई ! दादाभाई नौरोज़ सुघर वर। आवहु प्यारे तुमहिं तुरत भेंटहि लगाय गर॥ धन्य मातु जिन जन्यो तुमैं धनि पिता तुमारे। धन्य गाम धनि धाम जाम जन्म्यो जित प्यारे॥ धनि पारस के पारसीन को कुल जित पारस। प्रगट रूप सों प्रगट भयो प्रगटावन को जस॥ जो भारत को साँचो आज सुपूत कहावत। सब भारतवासी जाऐं अभिमान जनावत ॥ हे दादाभाई! तुमरी किमि करें बड़ाई ? दई जाहि दै दई बड़ाई बड़ो बनाई॥ कहत सबै भारतवासी गन हिय हरखाई। भारतवासिन के तुम साँचे दादाभाई॥