पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२८०

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- २५० साँचे दादा हो तुम साँचे दादाभाई। दीनी जान अमित बड़ाई॥ भाईहू सो हे प्यारे नौरोज़ जी निपट नवल साज सों। भारत को नौरोज़ कियो तुम अवसि आज सों॥ शोक 'ब्राडला' के वियोग को तुमहिं मिटायो। मुरझी आशा लता हरित करि पुनि लहरायो। विजय तुमारी अहै विजय जातीथ सभा की। सिगरे भारत की तासों गौरव अति याकी॥ करतब अपने ही को पायो नहिं तुम यह फल। भारतवासी कारन को कीन्यो मुख उज्ज्वल॥ कारे करन जोग सब कारन के प्रगटायो। अहैं नकारे कारे यह भ्रम दूर बहायो॥ जे निज देश प्रबन्धहु के हित परम नकारे। कहे निकारे कारे रहे सोई तुम चुने गये गोरन सों गोरन के देशै हित। करन प्रबन्धहि काज सुराज सभा में थापित ॥ भए जु तुम तब सब कारे किमि होहिं नकारे। कारे यह गुनि फूले अँग समात नहि प्यारे॥ कारो निपट नकारो नाम लगत भारतियन। यद्यपि कारे तऊ भागि कारी बिचारि मन॥ अचरज होत तुमहुँ सन गोरे बाजत कारे। तासों कारे कारे शब्दहु पर हैं वारे॥ अरु बहुधा कारन के हैं आधारहि कारे। विष्णु कृष्ण कारे कारे सेसहु जग धारे॥ प्यारे॥