पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२८६

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२५६ चपत खाने को सर झुकाये हुये हैं। भरतदास से लौ लगाये हुए हैं। कड़ी चोट क्या दिल पै खाये हुए हैं। जो घामड़ की सूरत बनाए हुए हैं। अजब देव मलऊन काशी' शुकुल हैं। बहुत इसको हम आजमाये हुए हैं। पद सबै शास्त्र नोको काव कहों मैं तोकों। अस मन आवत चार तमाचे इन गालन पै ठोंकों॥ कथा बार्ता दिल्लगी के प्रचारी। तत्वज्ञ औ चित्त हारी॥ अचारी' अहैं अहैं याचते अन्न कन्नः। स वै पातु यूष्मान पड़क्का प्रपन्ना॥ रामदीन सुतो जातः गौरी नक्षत्र सूचकः । तस्य पुत्रो अभूत धीमान् ज्वालादत्तेति' जारजः ॥ देवप्रभाकर प्रखर पंडित हैं महान् । त्यों पद्मनाभ हैं पाठक बुद्धिमान् ॥ करते सदैव संकर्षण हैं विचार। हूँ हैं परास्त ये दोऊ भट किस प्रकार॥ १. ये मिर्जापुर में प्रेमघनजी के कृपापात्रों में से थे। आप आनन्द कादम्बिनी प्रेस के मैनेजर भी पहले थे। २. इनका नाम नारायणदत्त आचारी था, आप प्रेमघन जी के यहाँ पण्डित थे। ३. ये प्रेमघन जी के पुरोहित हैं, अब भी आप मिर्जापुर में रहते हैं। ४. इसका अर्थ है दोगला। ५, ६, ७. ये तीन शीतलगंज ग्राम के विद्वान् पण्डित थे।