पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२९७

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+ धन्य 'केंट की डचेज़' "ड्यूक एडवर्ड' नामधर। लहो सुता जिन तुम सी, लाख सुतन सों बढ़कर ॥ धनि अट्ठारह सौ उन्नीस ईसवी को सन। धनि चौवीस मई तुव जन्म दिवस मन रञ्जन ॥ धन्य बीसवीं जून अठारह सौ सैंतिस की। वृटेन राज लहि जबै जगाई भाग बृटिश की। तुम सों प्रथम उतै राजे बहु रानी राजे! रहे वीर, न्यायी प्रतापिहू बाजे बाजे॥ पै तुम सों सम्बन्ध कहा उनको महरानी। भयो ग्रेट है ग्रेट बृटेन लहि तुहिँ अभिमानी। कहत “एलिज़ाबेथ” रानी कहँ कोऊ आप सम। पै अनेक अंशन में रही आप सों वह कम। कहँ परिवार, प्रताप, राज, वय, तुम सम पायो। कहँ सब प्रजा बृटेन को हित चित बनि अपनायो। शान्ति सुखहिं कब लयो दूर करि कलह लराई। रानी छोड़ि राज राजेसुरि कब कहवाई। तेरे हित सुख फल बीजन बोए बिधि उन दिन। उन्नति अंकुर तासु बड़ाई देय ताहि किन ॥ नहिं यूरप. नहि एशिया लही तोसी रानी। अमेरिका अफ़रिका आदि की कौन कहानी। तुव गुन नामहुँ सों अति अधिक "अलेक्जेन्ड्रीना ।। विक्टोरिया महारानी तुव सम नृपति ना॥ भयो सिकन्दर हिन्द राज नहिं मर्यो युवाही। तेरी विजय पताका जग सब दिसि फहराई॥ मिटी राज राजत तेरे सब कलह लराई। जाति भेद, मत भेद, नीति हित, जो चलि आई॥ राजा प्रजा दुहूँ को दृढ़ विश्वास दुहूँन पर। भयो तिहारेहि समय भूलि भय लेस परस्पर ।