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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३२९

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अब। तौ नहिँ पच्छिम उत्तर देस रहत यह ऐसो। नहिं जानत कब को दै गयो होत यह कैसो॥ तबही सों दैवी नर हम सब तुम कहँ माने। परजन दुख भजन मनरञ्जन साँचहु जाने॥ अरु नहिं केवल हमहीं सब तुम कहँ अस जानत। जहाँ विराजे तुम तहँ सब ऐसहि अनुमानत॥ सबै प्रदेस निवासी अटल तिहारो सासन। चहत रहे निज देस माहिं सह सहस हुलासन॥ इत आवन की चली बात जब तुमरी प्यारे। बंग वासि गन तुमहिं लहन हित बहुत पुकारे॥ पै न भाग जागे उनके न तुमहिं उन पायो। हम सब पर करि दया ईस तुहिं इतहिं पठायो॥ पूरब पुन्य प्रभाय पाय तुव पाय परस

पच्छिम उत्तर देस निवासी प्रजा जाहि कब॥

रही भला ऐसी आसा जैसो कछु पायो। बृटिश राज को साँचो सुख लहि सोक नसायो॥ नहिं केवल कराल ल प्रबन्ध मनोहर। करिकै तुम बनि गए प्रजा के साँचे हियहर॥ कियो प्रबन्ध महामारी को अतिसय उत्तम। जासों नहिं अन्याय मच्यो इत और देश सम॥ प्रचण्ड पुलिस पच्छिम उत्तर दै दै दुष्टन दण्ड दण्ड मम सीध और अन्य आधीन जिते ऐसे अनुसासक। साहसीन भय लेस हीन अन्याय उपासक॥ दमन कियो तिन सहज सुभाय ससंक बनायो। समन प्रजा आतंक भयो सुख सुभग सुहायो॥ जान्यो सब प्रधान अनुसासक है कोउ हम पर। जो सब के हित हेत करत चिन्तन प्रवीन वर॥ परम अन्याई। बनाई॥