पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३६९

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द्वार द्वार यव कलस युत, तोरन बन्दनवार।
कदली खम्भ सजे धजे सुभ सूचक व्यवहार॥
ध्वजा पताका फहरहिं मानहुँ मेघ समान।
चमक चंचला सी परै आतस बाजी जान॥
बारबधू मिलि गावतीं सबै बधाई आज।
कथक कलामत नट गुनी, करत मुबारक साज॥
कवि कोविद पण्डित सबै, नाना कबित बनाय।
राजभक्ति जनि साँचहूँ, देते प्रगट दिखाय॥
जय जय जय है सुनि परत, भारत में चहुँ ओर॥
मंगल मंगल को रह्यो आज महा मचि सोर॥

तोटक


घरही घर मंगल मोद मच्यो।
सबही जनु ब्याह विधान रच्यो॥
सबही उर आज उच्छाह महा।
सबही अति अनंद लाहु लहा॥

बरवै


दिल्ली के दरवाजे सजी बरात।
जमु जगजन जुरि आये इतै लखात॥
लण्डन सों संग लैके कैयो लाट।
सहिबाले सजि आये ड्यूक कनाट॥
भारत के प्रभु आये वाइसराय।
कलकत्ते सों दल बल संग हरखाय॥
सेनापति बर किचनर भारतदेस।
लाँघि समुद्र आये गुनि अवसर बेस॥
मन्दराज पति और बम्बई नाथ।
ब्रह्म देश पालक, बंगेसर साथ॥