पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३७५

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सुभ गाँठि जोरी; जुगल जोरी की कुसल चहि सब जने।
मंगल कुलाहल करत "मङ्गल जयति जय जय जय" भने॥

दोहा


अनुसासन श्रीमान् को श्रीमुख सबहि सुनाय।
सभासदन गन के मनहिं सुखन दियो हुलसाय॥
भारत पति नवराज राजेसर तुम कहँ मानि।
सुनि सासन सादर चलन नाये सिर शुभ जानि॥
छुटीं तोप, फहरीं ध्वजा, बजे बधाई बाज।
भारत अवनि बधू मनौ, जानि सुअवसर आज॥

हरिगीती


देती बधाई ब्याज सों करिकै सगाई आप सों।
सन्मान जग दुर्लभ लहन हित बिनहिं श्रम सन्ताप सों॥
धरि आस दृढ़ विस्वास छूटन सेस निज दुख पाप सों।
चाहति सनेह बिसेस तुव सबही सपलि कलाप सों॥

दोहा


हुलसि हिये सारी प्रजा दया दुहाई देति।
अरज करन को जोरि जुग करन रजायसु लेति॥

रोला छन्द


निश्चय सुभ अवसर यह हम सब कहँ सुखदायक।
जो आनन्द मनावैं हम, है वाके लायक॥
देहिं जु कछु बकसीस आप लायक यह वाके।
माँगे जो हम, लायक यह देबे के ताके॥
चहत न हम कछु और, दया चाहत इतनी बस।
छूटैं दुख हमरे, बाढ़ै जासों तुमरो जस॥