पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४०

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उर मैं एक ओर झोरा वह, अन्य छोर पर।
झब्बा से बहु छोटे बटुये झूलत सुन्दर॥१२७॥
विविध रंग के, चांदी की घुन्डिन सों सोहे।
पान मसाले विविध भरे रेसम सों पोहे॥१२८॥
लिये खास हथियार कटार कमर में खोंसे।
भरे तमंचे आदि खरीदे बहु दामों से॥१२९॥
अलबेली अवली अरदली सिपाहिन केरी।
आगे २ चलत लोग हहरत हिय हेरी॥१३०॥
राजकुमारी पाग लसत सिर जिनके बांकी।
लाल बनाती खोली सों तैसेही ढाँकी॥१३१॥
एक कांध पै तोड़ेदार तुपक धरि सोहत।
दूजे साबरी परतला परि मन मोहत॥१३२॥
जामैं झूलत बगल बंक तरवार कटीली।
त्यों गैंडे की ढाल पीठ फुलियन सों खीली॥१३३॥
लाल अंगरखन पै कारी वह यों छबि पाती।
गुल अनार पर परी मधुकरी ज्यों मन भाती॥१३४॥
कमर बँध्यो पटका पर पेटी कसी साज की।
जा में रहत सबै सामग्री तुपक बाज की॥१३५॥
रंजक, दानी, सिंगरा, तूलि, पलीता दानी।
तोस दान, चकमक पथरी गोलीन भरानी॥१३६॥
बीछी-आर सरिस टेई मूछ सबही की।
दाढ़ी ऐंठी, उठी असित अहिफन सम नीकी॥१३७॥
दीरध तन परि-पुष्ट सबै बल सो ऐडाते।
भरि उछाह सों उछरत चल दर्प दिखराते॥१३८॥
खटकनि ढालन की अरु झनकन तरवारन की।
चलनि बीरगति गहे, करत रब हुंकारन की॥१३९॥
‘सहज सवारी साजत वै जो परत लखाई।
मनहुं चढ़त सामन्त कोऊ रन करन लराई॥१४०॥