पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—३९५—

पद्मराग मणि कर्णफूल करवीर कुसुम छबि भाता था।
सुमन समूह माधवी हीरे का लच्छा वन भाता था॥
बना मोतिया मोती माला हिय पर हिय हर लेती थी।
चम्पाकली कली चम्पा मिल कुच श्रीफल छबि देती थी॥
लाल लाल के लटकन से गुल अनार थे मन हर लेते।
जपा कुसुम के झब्बे चारों ओर झूलते छबि देते॥
कलित कांची बेगम बेइलिया की ललित मनोहर थी।
चारु चाँदनी कुसमावलि की पायल सजती सुन्दर थी॥
किस २ अंग परिच्छद अलंकार की शोभा जाय कही।
जिधर दीठ यह पड़ी अड़ी मोहित होकर बस वहीं रही॥
शुभ सिंगार सुसज्जित देख दुलहिन की शोभा प्यारी।
बनी ठनी सब गईं संग की सहेलियाँ उस पर बारी॥
सरस राग सच्चे सुर साधे गीत ब्याह के गाती थीं।
बनी प्रेम मदमाती निज गुन रूप गर्व प्रगटाती थीं।
बनरा सेहरा सुना सहाना मन में मोद मचाती थीं।
बर बिहगावलि बोल व्याज से बहु विनोद बगराती थीं॥
चारो ओर मंगलाचार मचा सचमुच था मन भाता।
साज बाज सब विवाह का सा जिधर देखता मैं पाता॥
चतुष्कोण प्राकार मध्यवर्ती उचित स्थल पर सोहे।
नव दल फल फूले फूलों से दबकर द्रुमदल मन मोहे॥
लेते थे, मानो है लगी कनात हरी उनकी अवली।
चारु चमत्कृत चमन की अवनि जिसके बीचो बीच भली॥
लीची औ सहकार पनस बन फर्शी झाड़ सुहाते थे।
लाल हरे पीले फल कवल कुमकुमे कमल दिखाते थे॥
कदली पत्र लिये पंखा था घौर बनाये चामर था।
दास पपीता आतपत्र ले खड़ा देखता सुन्दर था॥
चोबदार बाअदब खड़े से सर्व कतार सुहाती थी।
द्विजअवली की बोल व्याज से उचितादेस सुनाती थी।