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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४४८

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ढूँढ़त ज्ञानी गन जोगी जन
आपहि आपहि माहिं ध्यान धर।
आप रूप सों आप बसहु मन
सदा प्रेमघन के निसि बासर॥६०॥

 

श्री सूर्य्य पञ्चक


जय जय भानु कृसानु तिमिर तृन
जय जग मंगल कारी।
जयति लोक रञ्जन भय भञ्जन
दुसह दोष दुख, हारी॥

जय जय कारन परम प्रकासन
आदि सृष्टि यह सारी।
जय ब्रह्मा, हरि, इन्द्र, बरुन मय
यम कुबेर त्रिपुरारी॥

जय जय जल कर्षन, जल वर्षन
जय सहस्र कर धारी।
जयति विसाल ताल अम्बर के
बाल मराल बिहारी॥

जय प्राची तिय तिलक भाल
सिर फूल प्रतीची प्यारी।
जयति कुमोदिनि संकोचन
प्रिय कन्त कमलिनी नारी॥