पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४६७

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है चैन रैन दिन दिल भीतर,
है अपन वयन शुचि कवित्त,
संगीत सरस साहित्य सुधा,
पीये एक बन दीवाना है॥१२०॥

कलङ्गरा


जोगिनियां बन आईं रे—लाड़ली केहि कारन॥टेक॥
अंग भभूत गले बिच सेल्ही कर लै बीन बजाई रे।
गेरुआ रंग गूदरी अंगन, रूप अनंङ्ग लजाई रे॥
सुन्दर करन बदन सुन्दर पर लट काली लटकाई रे॥
बद्रीनाथ यार द्वारहि अलि भोरहि अलख जगाई रे॥१२१।।

काफ़ी की


जाय उन ही संग रहो रहो—यह लखि कुचाल अब सहि न जाय॥टेक॥
सोई फूल त्यागि तरु डाली, डाली लगत जाय घर माली,
पै मधुकर नाहिन लखाय॥
श्री बदरीनारायन प्यारे, भये अनेकन यार तुम्हारे,
यह हमसे कैसे लखाय॥१२२॥

कहाँ जागे? सच कहो कहो, आवत भोर भये भागे॥टेक॥
लटपट पाग नयन अलसाने, अटपट बयन कपट छल छाने,
अञ्जन मधुर अधर लागे॥
लगत न लाज दिखावत लालन, जावक छाप छपाये भालन,
गाल पीक लीकन दागे॥
झूठी सौंहन खात खिस्याने, शिथिल अंग नहि होस ठिकाने,
छतियन हार बिना धागे!!
दिलवर श्री बदरीनारायन, जाय परो उनही के पायन,
जिनकी प्रीत न अनुरागे॥१२३॥