पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४६८

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कलङ्गरा


सैंय्या मोरी सूनी सेजरिया रे—चले जात कित यार॥टेक॥
हाँ हाँ करत हूँ पैयां परत हूँ, जनि जा प्रेम बजरिया॥
बद्रीनाथ हिये बिच कसकत, तुमरी तिरछी नजरिया॥१२४॥

नीकी अधिक लगै—सैंय्या तोरी सूही पगरिया रे॥टेक॥
मुस्कुरात बतरात चितें चित—लेत नजरिया रे॥
बद्रीनाथ कभूँ भेरि अइयो—प्यारे हमारी नगरिया रे॥१२५॥

उन बिन हो नैनन नींद न आवै॥टेक॥
कर पाटी पटकत निसि बीतत जब जब मदन सतावै॥
कोइलिया कूकत दई मारी, पपिहा बोल सुनावै।
सुधि बद्री नारायन पी की, सजनी हाय दिलावै॥१२६॥

बालम भोर भयो अब जागो॥टेक॥
सारी रैन चैन से खोई, अब तो आलस त्यागौ॥
श्री बद्रीनारायन जू पिय प्यारे, किन गर लागो॥१२७॥

सूरत मूरत मैन लखे बिन, नैना न मानें मोर॥टेक॥
बरजत हारि गई नहिं मानत जात चले बरजोर॥
बद्रीनाथ यार दिल जानी मानत नाहिं निहोर॥१२८॥

फिरत हौ निपट बने बिगरैल, छटे छबीले छैल॥टेक॥
औरन के संग सजे धजे नित, करत बाग की सैल॥
श्री बदरीनारायन लखि कतरात हमारी गैल॥१२९॥

श्री गंगा स्तुति


जय जय जग जननि गंग।
सोभा तरलित तरंग।