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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४७३

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पुरुषोत्तम नामहिं चरितारथ
कियो आप अनुपम धनुधारी॥
दया वारि बरसाय प्रेमघन
भक्तन पर भू ताप निवारी॥१३४॥

प्रभावती


जय जय अभिराम चरित राम रूप धारी!
जय असरन सरन हरन भक्त भीर भारी॥
मुनि मख राखे सुवाहु आदिक भट मारी।
ताड़का विनासि, सहज गौतम तिय तारी॥
तोरि धनुष, व्याहि जनक राज की दुलारी।
सिर धरि गुरु सासन तजि राज, बन बिहारी॥
खर दूषन तृशिर कुम्भकरण खल संहारी।
राछस बहु कोटिन संग लंकपति पछारी॥
राज दै विभीषन सुग्रीव सोक टारी।
आइ अवध कियो प्रजा प्रेमघन सुखारी॥१३५॥

श्रीगणेश
रा॰ भैरव


जय गनेस, सेवित सुरेस
जय सिद्धि सदन, जय २ गन नायक॥
उमा सुवन, संकर के नन्दन
जग बन्दन, मुद मंगल दायक॥
एक रदन, अघ कदन
गज बदन, जय जय विद्या बुद्धि विधायक॥
विघन हरन, जय जय लम्बोदर
भाल बाल हिम कर छबि छायक॥
दयासिन्धु! करि दया प्रेमघन
जानि भक्त निज होहु सहायक॥१३६॥