पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४७४

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सरस्वती देवी
इमन


मङ्गल करहु दया करि देवी॥
विमल ज्ञान दै, सुमति सुधारहु
तमहिय हरहु दया करि देवी॥
है अनुकूल प्रेमघन जन हित
सब सुख भरहु दया करि देवी॥

ठुमरी


करु देवि दया निज दास जानि
जुग जोरि पानि बिनऊँ तोपै॥
बीना पुस्तक युग करन लसत,
सुभ स्वेत विभूषन वसन सजत।
बदरी नारायन देहु सुमति
जननी! करि कृपा सदा मोपै॥१३७॥

प्रभावती


जय जय जय जयति देबि सारदा भवानी,
विद्यावर बिमल बुद्धि विशद ज्ञान दानी॥
कुन्द इन्दु सरिस रूप, स्वेत वसन छवि अनूप,
अलकार धवल नवल सुन्दर छबि छानी॥
पुस्तकवीना विशाल युगल करन छबिरसाल,
शुभ्र सरस सुमन माल, राजत सर सानी॥
ध्यावत काटत कलेस, प्रगटत आनन्द वेश,
वन्दित सारद सुरेस, मगल मय मानी॥
बदरी नारायन जन, विनवत युग जोरि करन,
बसहु आय मेरे मन मेरी महरानी॥१३८॥