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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४८०

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हानि लाभ नहिं हार जीति की जागत जानि दिवारी।
श्री बदरी नारायन श्री राधा माधव गिरधारी॥१५४॥

खेलत जुआ जुगल नैनन सों॥टेक॥
मारि लेत बाजी मन को त्यों तनक ताकि सैनन सों।
हारि जात हिय हँसत तऊ कहि सकत न कछु बैंनन सों॥
मिली मार यह होत परस्पर चाहि रहे चैनन सों।
श्री बदरी नारायन जू दोऊ बिंधे बान मैनन सों॥१५५॥

देखो दीपति दीप दिवारी॥टेक॥
कातिक कृष्ण कुहू निसि मैं यह लागत कैसी प्यारी।
खेलत जुआ जुबन जन जुबतिन संग सब सुरत बिसारी॥
अम्बर अमल बिमल थल तल जगि जगमत जोति उँजारी।
स्वच्छ सदन साजे सज्जित ह्वै सोहत नर औ नारी॥
मिलि मित्रन सब घूमत इत उत छाई द्यूत खुमारी।
छाई छबि बीथी बजार मैं भई भीर बहु भारी॥
मोल खिलौना मोदक लै कै रहे बाल किलकारी।
श्री बदरी नारायन जाचक जन जाचत त्यौहारी॥१५६॥

देखत दीपावली दिवारी॥टेक॥
दीपति दीपक दबी बदन दुति दूनी देख तिहारी।
मनहु मयंक मध्य उरगन लौं उई आय तू प्यारी॥
आज अजब जोबन जौहर की जागत जोति उंजारी।
श्री बदरी नारायन रीझे बातें करत मुरारी॥१५७॥

बनरा, यशन, बधाई
बनरा


धावो धावो बनरा की छबि आओ,
देख लोरी जानि मंगल नयन लाह लेह तन तोरी॥टेक॥