पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४८१

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कवि बदरी नारायन जू बनत शुभ वैन,
कहूँ ऐसी माधुरी मूरत हीनो नहि दैन,
अवलोकि अति आनंद अलीगन लहो री॥१५८॥

धावो धावो संग की सब सहेलरियां—
आवो आवो पकरि जकरि बनवारी लाओ॥टेक॥
बरसाओ रंग सहित उमङ्ग एक सङ्ग,
सरसाओ ताल जाल देत चङ्ग औ मृदङ्ग,
गाली आली वनमाली को सबन गावो गावो॥
पिय बदरी नारायन कविवर ललकारि कर,
धर नैन सैनन के बान मारि मारि
लाल भाल मैं गुलाल माल पै लगाओ॥१५९॥

मंगल मैं मंगल साज आज॥टेक॥
सुभ दिन गुनि गहि उछाह अनुचर,
प्रमुदित जिमि लहि वसन्त मधुकर;
जय जय धुनि कोकिल कल समाज॥
लै खिलत सकल मुख भनित दान,
जिमि द्रुम नव दल कुसुमित सुहान,
तिमि लखियत याचक गन समाज॥
श्री बदरी नारायन द्विजवर, जिय जानि सुभग
सोभित औसर यह देत बधाई काशिराज॥१६०॥

बनरा बराती
राग शाहाना


नीकी वनक बन आया बनरा। सबके मनहिं लुभाया बनरा॥
माथे मौर मुख बेले का सहरा, चितवत चितहिं चुराया बनरा॥