शकरकन्द वो अंगूर दिल से भुलाया,
मजा लाले लब का तेरे जिसने पाया।
दोआ मुद्दतों माँगी है मसजिदों में,
तब उस बुत को हमने शिवाले में पाया।
झुका बस लिया हार कर अपनी गरदन,
तेरे बस्फ़ में जो क़लम को उठाया।
खुली मह मुनवर की क्या साफ़ कलई,
शवे माह में बाम पर जो तू आया।
नहीं सिर्फ मुझ पर ही तेरी जफाएँ,
हजार का जी हाय तूने जलाया।
चमन में है बरसात की आमद आमद,
अहा आसमां पर सियः अब छाया।
मचाया है मोरों ने क्या शोरे महशर,
पपीहों ने क्या पुर गजब रट लगाया।
बरुसे बरक़ नाज़ से क्या चमक कर,
है बादल के आंचल में मूं को छिपाया।
तुझे शेख जिसने बनाया है मोमिन,
हमैं भी है हिन्दू उसी ने बनाया।
नज़र तूर पर जो कि मूंसा को आया,
वही नूर हम को बुतों ने दिखाया।
परीशां हो क्यों अब्र वे खुद भला तुम,
कहो किस सितमगर से है दिल लगाया॥८॥
पड़ै न बल बाल सी कमर पर,
समझ के चलिए ए चाल क्या है।
नजर के गड़ने से साफ चेहरे,
पै यार तेरे जवाल क्या है।
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४९३
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