सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—५०१—

जोहत जुग जोबन लट्‌टू से, होत हाय! मन लट्‌टू रामा।
हरि २ निखरी जोति जवनियाँ बारी बारी रे हरी॥
बरस २ रस बेगि प्रेमघन! बिन तेरे कल नाहीं रामा।
हरि २ कौन मूठ पढ़ तूने मारी मारी रे हरी॥६६॥

दूसरी
नागरी भाषा
नवीन संशोधन

मुरली मधुर सुनावो हमसे भी तो आँख मिलावो रामा।
हरि हरि गिरधारी, बनवारी, यार मुरारी! रे हरी॥
अलकैं घूँघरवारी, लहरैं जैसे नागिन कारी रामा।
हरि हरि लगैं चाँद सी सूरत पर क्या प्यारी रे हरी॥
आवो पिया प्रेमघन वारी जाऊँ मैं बलिहारी रामा।
हरि हरि बरसाओ रस मानो अरज हमारी रे हरी॥६७॥

तीसरी


आकर गले लगाले, मेरे निकलत प्रान बचा ले रामा।
हरि हरि साँवलिया मैं तो वारी वारी रे हरी॥
लगी लगन अपनी है तुमसे, अब क्यों हाय सतावो रामा।
हरि हरि दिखला जा सुरतिया प्यारी प्यारी रे हरी॥
पिया प्रेमघन दिलवर जानी! तुझ पर मैं दीवानी रामा।
हरि हरि कौन मोहनी तू ने डारी डारी रे हरी॥६८॥

नटिनों की लय


मन्द मन्द मुसुकानि मनोहर बानि मोहनी डारे रामा।
हरि हरि जियरा मारै कजरारी नजरिया रे हरी॥
क्या करौंदिया सारी, पहिने लागी लैस किनारी रामा।
हरि हरि निखरि परी ओढ़े धानी चादरिया रे हरी॥