पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५२६

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उभरे जोबन अंचल पर कर देत चित्त हैं चंचल रामा।
हरि हरि देखत धसैं हिये ज्यों कोर कटरिया रे हरी॥
लाख आंख उलझाये, चलती ठहर २ बल खाये रामा।
हरि २ बाल कमानी सी लचकाय कमरिया रे हरी॥
पीर प्रेम की समझि, प्रेमधन हम पर दया दिखावो रामा।
हरि २ चार दिना है जोबन की बहरिया रे हरी॥६९॥

दूसरी


निकरल ऊ तो आफत कै परकाला रे हरी॥
औरन के संग जाला, रोजै बदलि रंग चौकाला रामा।
हरि २ देखत हमके दूरै से कतराला रे हरी॥
जादू हम पर डाला, मारा कहर नजर का भाला रामा।
हरि २ गोरी सूरत मीठी मूरतवाला रे हरी॥
पिया प्रेमघन तरसावै दै, टाला कसे निराला रामा।
हरि २ पड़ा कठिन बस! बेदरदी संग पाला रे हरी॥७०॥

तीसरी
बनारसी लय


हम पर जानी! तू ने जादू डाला रे हरी॥
सोहै सुन्दर बाला, कानन में क्या झूमकवाला रामा।
गरवां में छहराला मोती माला रे हरी॥
कर चेहरा चौकाला, देकर सुरमे का दुम्बाला रामा।
कैसा मारा कहर नजर का भाला रे हरी॥
क्या लहँगा लहराला, लाल दुपट्टा गजब सुहाला रामा।
देखत चोली हरी हाय जिउ जाला रे हरी।
सरस प्रेमघन आला, पायल नूपुर सोर सुनाला रामा॥
चलत चाल जैसे मतंग मतवाला रे हरी॥७१॥