पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५२७

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गवनारिनों[१] की लय


घूमो मत इतरानी, भरी गरूरन भौंहन तानी रामा।
हरि २ जानी चार दिना जिन्दगानी रे हरी॥
जोबन रूप दिवानी, बालो सब से अटपट बानी रामा।
हरि २ मानो मन में अपने को लासानी रे हरी॥
है बादर परछाहीं, रहिहै यह कबहूं थिर नाहीं रामा।
हरि २ बिते जवानी, कोऊ काम न आनी रे हरी॥
हंस कर कबहुं न ताको, हाय झरोखेहू नहिं झांको रा॰
हरि २ यार प्रेमघन से हठ बरबस ठानी रे हरी॥७३॥

दूसरी


सूरतिया ना भूलै, हिय में हाय हमारे हूलै रामा।
हरि २ जानी तोरी चंचल चितवनियां रे हरी॥
प्यारी प्यारी बतियां, सोहैं कुछ कुछ उभरी छतियां रामा
हरी २ बारी बारी निखरी जोति जवनियां रे हरी॥
सरस प्रेमघन बरसत रस, मृदु मन्द मन्द मुसुकाई रामा।
हरि २ मारि गई मोहिं मनहू मूठ मोहनियां रे हरी॥७४॥

तीसरी
बनारसी लय


सावन रस उपजावन बीतन चाहत ये बेदरदी रामा।
एक बेर दे देखै भरि नजरिया रे हरी॥
झलकौ नहीं दिखाओ, दिल में दया दरद नहीं ल्याओ रामा।
काहे मारो बरबस बिरह कटरिया रे हरी॥


  1. गवनहारिन यहाँ अधम श्रेणी की वेश्याओं को कहते हैं, जो प्रायः नफीरी और दुक्कड़ अर्थात् रोशनचौकी पर विशेषतः बधावे आदि के साथ सड़क पर गाती चलती हैं और उनके गाने की लय सबसे विलक्षण और अलग होती है।

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