पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५३

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बजत ढोल घन गर्जन सम कीने रव भारी।
चटकत गायक मानहुँ बिज्जु पतन चिक्कारी॥२९८॥
जानि परत जनु ऊदल आप आय इत डपटत।
कै करीन माला पैं कुपित केहरी झपटत॥२९९॥
जहँ बैठे नर ऐंठे मूछ, रोस भरि घूरै।
तनहिं तनेनै अंगड़ि अँगरखन के बंद तूरै॥३००॥
बातनि, उठनि, खसकि बैठनि मैं होत लराई।
मचै जबै घमसान बन्द तब होत गवाई॥३०१॥
होय बन्द जब एक ओर तब दूजी ओरन।
चटकत ढोल सुनाय सहित करखा के सोरन॥३०२॥

नाग पञ्चमी

नाग पंचिमी निकट जानि बहु लोग अखारे।
लरत भिरत सीखत नव दाँव पेच प्रन धारे॥३०३॥
जोड़ तोड़ बदि देत बढ़ाय अधिक निज कसरत।
है तैयार पंचिमी के वे दंगल जीतत॥३०४॥
सीखत चटकी डांड़ विविध लकड़ी के दावन।
बांधत कूरी किते लोग लागत ही सावन॥३०५॥
संध्या समय आय सौ सौ जन कूदत कूरी।
बीस हाथ लौं लांघि दिखावत बहु मगरूरी॥३०६॥
होत पंचमी के दिन निरनय इन कलान को।
सम वयस्क, सम कृपा कुशल जन, मध्य मान को॥३०७॥
जा दिन अति उत्साह लखात समग्र देश इहि।
बड़े बड़े त्योहारन के सम जानत जन जिहि॥३०८॥
अठवारन पखवारन आगे होत तयारी।
गड़त हिंडोला झूलत गावत युवती वारी॥३०९॥
निज गुड़ियान संजाय बालिका बारी भोरी।
राखत जीतन बाद सखिन सों बदि बरजोरी॥३१०॥