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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५३४

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मैं जेहि घाय अघाय गई गुय्यां रे॥
व्याकुल जानि, मोहिं गर लायो;
हौं सकुचाय लजाय गई गुय्यां रे॥
पिया प्रेमघन, मग बतरायो;
मैं तेहि हाथ बिकाय गई गुय्यां रे॥९३॥

दूसरी
स्थानिक स्त्री भाषा
कजली खेलने वालियों की रुचि का चित्र


सारी रँगाय दे; गुलनार मोरे बालम॥
चोली चादरि एक्कै रंगकै, पहिरब करिकै सिंगार मोरे बा॰
मुख भरि पान नैन दै काजर, सिर सिन्दूर सुधार मोरे बा॰
मेंहदी कर पग रंग रचाइ कै, गर मोतियन कर हार मो॰
गोरी २ बहियन हरी २ चुरियाँ, पहिरन जाबै बजार मोरे बा॰
अँठिलातै चलबै पौजेबन की करिकै झनकार मोरे बालम॥
बीर बहूटी सी बनि निकरब, बनउब लाखन यार मो॰ बा॰॥
झेलुआ झूलब कजरी खेलब, गाउब कजरी मलार मो॰ बा॰
सावन कजरी की बहार में, तोहसे करौबै तकरार मो॰ बा॰
देखवैय्यन में खार बढ़ाउब जेहमें चलइ तरवार मो॰ बा॰
आधी राति तोहरे संग सुतबै, मुख चूमब करि प्यार मो॰ बा॰॥
बारे जोबन कै इहइ मजा है, जिनि किछु करह बिचार मो॰
रसिक प्रेमघन पैययां लागौं, मानः कहनवां हमार मो॰ बा॰॥

गवैयों की लय


आई री बरखा ऋतु आली॥
घुमड़ि २ घन घटा घिरी चहुँ दिसि चपला चमकी बनवाली।
छाय रहे कित जाय प्रेमघन नहिं आये अजहूँ बनमाली॥९५॥