पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४६

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झूला मिल झूली गाई कजरी रसीली;
खेल ढुनमुनियाँ मिठान बा;
मन हुलसान बा
खुसी में बितावः सावन जबलै जवानी,
प्रेमघन प्रेम उमड़ान बा;
लहर लखान बा न॥१२०॥

दूसरी
बृजभाषा


चातक रटान की, मयूरनि नटान की,
छाई छबि घिरन घटान की;
लहर अटान की न।
पान मदिरान की, रसीले पान खान की,
छेड़नि मलारन के तान की;
कजरी के गान की न।
सजी सेजियान की सुतनि सतरान की,
पिय हिय लगि मुसकान की;
चुम्बन के दान की न
छुटि छितरान की, अलक उलझान की,
झूलनि में लर मुकतान की,
सूहे दुपटान की न।
है न ऋतु मान की, अरी पिय मिलान की,
प्रेमघन प्रेम उमड़ान की,
सुख के विधान की न॥१२१॥

तीसरी


आरे अब निठुर दुहाई तोहि राम की,
कैसी बरखा है धूम धाम की,