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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४७

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—५२३—

प्रेमिन के काम की न।
तरसत बरसन सों में बैठी,
पिया बनि चेरी तेरे नाम की;
बिकी बिना दाम की न।
बरसु बेगि रस प्रेम प्रेमघन,
बिछी सेज सजे सूने धाम की,
निसि जुग जाम की न॥१२२॥

छूट
प्रधान प्रकार के चतुर्थ विभेद में
नवीन संशोधन


कबहूँ तो इत आवो, तनी बाँसुरी बजाओ,
मन मेरो बहलाओ, भूलै नाहीं तोरी साँवरी सुरतिया ना।
नैना तोरे रतनारे, अन्हियारे कजरारे,
मयन मद मतवारे; करैं जुवतिन के हिय घतिया ना।
खुली गालन पैं प्यारी, लट लहरैं तिहारी,
कारी कारी घुँघरवारी, डसैं मन मानो नागिनि की भंतिया ना।
मुख लखि चन्द लाजै, सीस मुकुट विराजै,
अंग २ छबि छाजै; प्यारी २ प्रेमघन तोरी बतिया ना॥१२३॥

अन्य
तीसरे प्रकार का सप्तम विभेद


जोबनवां तोरे बड़े बरजोर रे॥
का करिहैं जानी बढ़े पर न जानी,
अबहीं तौ हैं ये उठे थौरै थोर रे।
छाती फारैं देखे छाती पर तोरे,
नोकीले जैसे कटरिया कै कोर रे।