पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४८

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—५२४—

प्रेम कै पीर बढ़ावैं झलकतै,
हैं घनप्रेम छिपे चित्त चोर रे॥१२४॥

दुनमुनियाँ की कजलियाँ
प्रथम लय


हरि हो—मानों कहनवां हमार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो—गावत राग मलार, बजाओ फिर बांसुरिया॥
हरि हो—वर्षा के आइलि बहार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो—छाये मेघ दिसि चार, बजाओ फिर बाँसुरिया॥
हरि हो—जमुना बढ़ी जल धार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो—लखि न परत जाको पार, बजाओ फिर बाँसुरियाँ॥
हरि हो—मोर करत किलकार, बजाओ फिर बाँसुरिया।
हरि हो—दादुर रट दिसि चार, बजाओ फिर बांसुरिया॥
हरि हो—झूलो हिंडोरा संग यार, बजाओ फिर बांसुरिया।
हरि हो—करिके प्रेमघन प्यार, बजाओ फिर बांसुरिया॥

दूसरी


मोहिं टेरत है बलबीर बजी बन बाँसुरिया।
सुनि बढ़त मनोज की पीर बजी बन बाँसुरिया॥
चलु बेगि जमुनवां के तीर बजी बन बाँसुरिया।
सखियन की भई जहां भीर बजी बन बाँसुरिया॥
जहां सीतल बहत समीर बजी बन बाँसुरिया।
किलकारत कोकिल कीर बजी बन बाँसुरिया॥
घनप्रेम की प्रेम जंजीर बजी बन बाँसुरिया।
मोहि खींचत करत अधीर बजी बन बांसुरिया॥१२६॥