पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४९

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दूसरी लय
स्थानिक स्त्री भाषा


आय कजरी कै दिन नगिचान रंगावः पिया लाल चुनरी॥
रेशमी सबुज रंग अंगिया सिआवः,
बेगि बैठि दरजिया की दुकान—रँगावः पिया लाल चुनरी।
लालै रंग अपनी पगरिया रँगावः;
होइ रंगवौ से रंग कै मिलान—रंगावः पिया लाल चुनरी।
बगिया में झेलुआ डरावः झूलः सँग,
सुनः नई नई कजरी के तान—रँगावः पिया लाल चुनरी।
प्रेमघन पिया तरसावः जिनि जिया,
आयल बाटै सजि सावन समान—रँगावः पिया लाल चुनरी।

तीसरी लय
काली बदरिया उमड़ि घुमड़ि कै उमड़ि घुमड़ि कै हो,
दैया! बरसन लागी चारिउ ओर।
दसौ दिसा में दमकि दमकि कै, दमकि दमकि कै हो,
दामिनि जियरा डेरावै लागी मोर।
पपिहा पापी पिया पिया की, पिया पिया की हो,
दादुर सँग रट लाये बरजोर।
पिया प्रेमघन अजहुँ न आये, अजहुँ न आये हो,
छाये कहाँ करि जियरा कठोर॥१२८॥

चौथी लय


दे नँहकारि, कि चलु मिलु पिय से,
हमै न सुहाए, तोरी बात, रे दुइ रंगी॥
नाक सिकोरिकै, भौंहें मरोरति,
ओठवन से मुसुकात, रे दुइ रंगी॥