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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५५१

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गावैं कजरी मलार, झूलैं सजिकै सिंगार,
तिय, मोहे रिझवार, छबि दरसि रहे।
तजु मान इहि छन, मिलु सजनी सजन;
बिन तेरे प्रेमघन पिय तरसि रहे॥१३१॥

कजली की कजली


साँचहुँ सरस सुहावन, सावन, गिरिवर विन्ध्याचल पैं रा॰
ह॰ २ मिरजापुर की कजरी लागै प्यारी रे ह॰॥
हर मङ्गल त्रिकोन का मेला, होला अजब सजीला रा॰
ह॰ २ जङ्गल में है मङ्गल की तैय्यारी रे ह॰॥
काली खोह छानि कै बूटी, गुण्डे तान उड़ावैं रा॰
ह॰ २ अष्टभुजा पर भैलीं भिरिया भारी रे ह॰॥
कहूँ जुबक जन सजे इतै उत डोलैं, बोली बोलैं रा॰
ह॰ २ कहूँ हिंडोला झूलैं बारी नारी रे ह॰॥
ओढ़ि ओढ़नी धानी, कितनी गुलेनार चादरिया रा॰
ह॰ २ पहिने सारी जंगारी जरतारी रे ह॰॥
चातक, मोर सोर जहँ होते, तहँ खनकार चुरी के रा॰
ह॰ २ छन्द छड़ा पाजेबन की झनकारी रे ह॰॥
कानन सघन सृङ्ग गिरि कन्दर, बिहरैं जहँ मृग माला रा॰
ह॰ २ तहँ मनहरनी हरनी लोचन वारी रे ह॰॥
मंजुल मधुर मलार, सरस सुर सावन, कल कजली के रा॰
ह॰ २ गुञ्जत कुञ्ज मनहुँ कोकिल किलकारी रे ह॰॥
निरतत नटिन परीन सरिस, संग ढोलक बजत चिकारा रा॰
ह॰ २ लट खोलें, पहिने टोपी औ सारी रे ह॰॥
उलटा शहर बनारस, मिरजापुर के रसिक रसीले रा॰
ह॰ २ होन लगी आपुस में खारा खारी रे ह॰॥
बिते पहाड़ी मेला सावन के, जब कजली आई रा॰
ह॰ २ मिरजापुर में तब छाई छबि न्यारी रे ह॰॥