पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५५२

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घर घर झूला झूलैं, करें कलोलैं गलियां गलियां रा॰
ह॰ २ ढुनमुनियां खेलैं जुबती औ बारी रे ह॰॥
मेहँदी ललित लगाय करन में, साजे सूही सारी रा॰
ह॰ २ कुलवारी तिय गावैं चढ़ी अटारी रे ह॰॥
बार नारि नाचैं औ गावैं, सरस भाव बतलावैं रा॰
ह॰ २ बरसावैं रस मनहुँ सुमुखि सुकुमारी रे ह॰॥
पूरिस सहर सरंगी के सुर, सहित ताल तबलन के रा॰
ह॰ २ टनकारी जोड़ी, घुँघुरू झनकारी रे ह॰॥
मोहै जुवक रसीले, निरखत इत उत व्याकुल घूमैं रा॰
ह॰ २ कजरी के मिसि छाई प्रेम खुमारी रे ह॰॥
डटे ज्वान बीहड़ औ अक्खड़, ठाढ़े नजर लड़ावैं रा॰
ह॰ २ चलैं यार लोगन में छुरी कटारी रे ह॰॥
पेंदा कटैं जहां तोड़न[१] के, परी छूट[२] की लूटैं रा॰
ह॰ २ लेलीं रुपिया रण्डी जेबा झारी रे ह॰॥
"चलः! बहः धोबी"[३] बोली सुनि सुनि भागैं रा॰
ह॰ २ दीन तमाशाबीनन की है ख्वारी रे ह॰॥
तिरमोहानी, नारघाट औ सड़क पसरहट्टा[४] पर रा॰;
ह॰ २ चलें दुतर्फा नैनन की तरवारी रे ह॰॥
बरसैं रस जहँ प्रेम प्रेमघन सुख सरिता भरि उमड़ै रा॰;
ह॰ २ रहै नगर में नित्य नई गुलजारी रे ह॰॥१३२॥


  1. रुपये से भरी टाट की थैली।
  2. दो प्रेमी व तमाशबीनों का नाचती हुई रण्डी को अधिक अधिक रुपया देने से एक दूसरे को परास्त करना।
  3. उज्ज्वल वस्त्र पहिनकर बिना रुपया दिये नाच देखनेवालों पर सफर्दा और समाजियों की बोली-ठोली।
  4. महल्लों के नाम जहां रात को मेला जमता है। शोक! कि अब यह रात का मेला नाम-मात्र को रह गया।