पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५५४

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नैन सरसे सुधारे, सैन मार देतीं मार॥
प्रेमी जुव जन भंग, पिये सजित सुढंग।
रँगे मदन के रङ्ग, सङ्ग लगे हिय हार॥
कोऊ कल कराहैं, कोऊ भरै ठण्डी आहैं।
कोऊ अड़े छेंकि राहैं, खड़े तडैं कोऊ तार॥
मेला इहि के समान, सैर सुखमें समान।
नहिं होत थल आन, देखि लेहु न विचार॥
प्रेमघन बरसावें, अति आनन्द मचावैं।
मिरजापुरी सुभावैं, सब मंगल के बार॥[१]

सामाजिक संगीत
विनोद
तीसरे प्रकार की सामान्य लय
ऐङ्गलो हिन्दुस्तानी भाषा
साँवर—गोरवा


सोहै न तोके पतलून सांवर गोरवा॥
कोट, बूट, जाकट, कमीच क्यों पहिनि बने बैबून[२] सां॰ गो॰
काली सूरत पर काला कपड़ा, देत किए रंग दून सां॰ गो॰।
अंगरेज़ी कपड़ा छोड़ह कितौ, ल्याय लगावः मुहें चून सां॰ गो॰।
दाढ़ी रखिकै बार कटावत, और बढ़ाए नाखून सां॰ गो॰।
चलत चाल बिगड़ैल घोड़ सम, बोलत जैसे मजनून सां॰ गो॰।
चंदन तजि मुँह ऊपर साबुन, काहें मलह दुऔ जून सां॰ गो॰।
चूसह चुरुट लाख, पर लागत पान बिना मुँह सून सां॰ गो॰।


  1. अर्थात् सावन के प्रत्येक मंगलवार को यह पहाड़ी मेला होता है।
  2. Baboon—एक प्रकार का बन्दर।