पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५६५

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घनश्याम धाम नहिं आये छाये घनश्याम गगन घुमड़त,
गरजत तरजत जल बरसि बरसि॥टेक॥
जीगन गन जोति जुरी जामिन, दसहूँ,
दिसि दुति दमकत दामिनि, हिय हरष हरत बिरही कामिनि,
मन मलिन होत दुति दरसि दरसि॥१॥
चातक चहुँ चाव चढ़े बोलैं, दिशि दिशि मयूर,
नाचत डोलैं, विष विरह केवार मनहुँ खोलैं;
उन बिन निकसत जिय तरसि तरसि॥
श्रीबद्रीनारायन कविवर, सरसिज सर,
मिरजापूर सहर करि प्यार यार लग जाय जिगर
तन मन वारुं पग परसि परसि॥२॥
अलि मान मान ना कीजै बसि सावन सोक नसावन मैं
मन भावन सों मुख मोर मोर॥ दृगवान कान लौं
तान तान, भौंहन कमान जुग जोर जोर॥टेक॥
उमड़त नभ घुमड़त घनकारे धार धरे धावत मतवारे
श्रीबद्रीनारायन जू लखिये, गरजत करि चहुँ ओर सोर॥३॥

कोकिल कल कूजत डार डार, लागत नहिं मन उन बिन हमार॥
नव नीरद उनये छन छन छन, छन छवि छवि छाजत।
मोर सोर, चहुँ ओर मचावत, दादुर बोलत बार बार॥
कारी निपट डरारी जामिन, विधु बदनी बिरही गजगामिन,
करि बेचैन मैन कल कामिन, पैन बान जनु मार मार॥
श्रीबद्रीनारायन कविवर दिल आय हाय लगि जाय धाय गर,
नटनि हटनि, मुसुक्यानि मुरनि पर तन मन डालूँ बार बार॥४॥
घुमड़त घन गरजै बार बार, बोलत मयूर चढ़ि डार डार॥टेक॥
झूलत मलार गावत कामिनि, किलकत कोकिल दादुर
जामिनि, दसहूँ दिसि तें दमकत दामिनि,
मानहु मनोज तरवार धार॥