राजकुमारी पाग सबै सिर टेढ़ी बाँधे।
तोड़ेदार तुपक कोउ कोउ धरि लाठी काँधे॥३५१॥
कोऊ ढाल तलवार कोऊ कर सांग बिराजत।
कोऊ बरछी लै तुरंग चढ़े करतबहिं दिखावत॥३५२॥
कोउ सिंगार सज्जित मातंग चढ़े ऐंडाये।
निज दलबल संग आवत विजय पताक उड़ाये॥३५३॥
आय लखत लीला सह कौतुक भक्ति भरे मन।
होत युद्ध घमसान रामरावन को जा छन॥३५४॥
आतशबाजी धूम छाय जब लेत अकासहिं।
होत सोर अन्दोर सकत कोउ सुनि नहिं बातहिं॥३५५॥
रावन को बध होत जबै जय जय धुन गूंजत।
गिरत धरहरा सम कागद रावन छिति चूमत॥३५६॥
बरसनि ढेलन की तब होत बन्द कोउ भांतिन।
लङ्का स्वर्ण लूटि के लौटत घर जन जा छिन॥३५७॥
मिलत परस्पर प्रेम सहित सबही हिय हर्षित।
करत प्रनामासीस पान लाची त्यों वितरित॥३५८॥
त्यों इनाम अकराम लहत बहु लोग यथावत।
सेवक, द्विज दच्छिना, कंचनी, कवि धन पावत॥३५९॥
भाँति भाँति के याचक त्यों जन दीन जुरे बहु।
लहत दान, सन्मान सहित संग प्रजा समूहहु॥३६०॥
लेत मिठाई पान सगुन करि नजर गुजारत।
निज स्वामी अभिवादन करि निज भवन सिधारत॥३६१॥
भरत मिलाप अधिक लोगन को मन उमगावन।
जादिन होत सनाथ अवध को दुखित प्रजागन॥३६२॥
होत राजगद्दी की अति विशाल तैयारी।
शारद पूनो निसि लहि दीपावली उज्यारी॥३६३॥
होत राजसी ठाट बाट संग जसन मनोहर।
होत सबै कृत कृत्य पाय लीला विनोदवर॥३६४॥
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७
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