पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६१६

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चहुँ चारु चमक चौगुनी चन्द,
चख चितवत चितहिं चुराई री।
बनि क्या...।
बागन विहंगावलि बोल बजत,
बर विमल बसन्त बधाई री।
बनि क्या...।
मधु माधव मास मयंकमुखी
मानिनी मनोज मनाई री
बनि क्या...।
गुलसन गुलदाऊदी गुलाब
गरवित सुगन्ध सरसाई री
बनि क्या...।
बरसाय प्रेमघन रसहि रुचिर,
रचि राग बहारहि गाई री।
बनि क्या...।

दूसरी


छतियन पर भौरा भूल रहे।
बिसराय कमल के फूल रहे॥टेक॥
श्री बदरी नरायन लुभाय,
तजि पास मेरो कतहूँ न जाय,
छवि छकित निहारि अतूल रहे।

बसन्त


सजि साज आज आयो वसन्त।
ऋतु सुखद सकल कामिनी कन्त।