पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६१७

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संयोगिन सुरपति सुख समन्त।
बिरही जन मानहुँ समय अन्त।
सजि साज आज...
सनि सौरभ सुखद सुमन समीर।
सीतल सुभगति संचलित धीर।
उन्मादित करि मद मदन बीर।
फहरावत अंचल युवति चीर।
सजि साज आज...
निहरत विहंगावलि व्योम जाय,
निज पच्छ पच्छिनि सन मिलाय।
कल कुंजत कल कुञ्जन सुहाय।
बोलत बोलन मन लै लुभाय।
सजि साज आज...
पल्लव लै ललित लता लवंग।
लपटी तरु नवल ललाम संग।
लहि फूल अमल मल सकल रंग।
प्याले जनु पियत सुरा अनंग।
सजि साज आज...
विकसे गुलाब गहि आव आन।
अलि अवलि सहित शोभाय मान।
छिति छवि अवलोकन समय जान।
जनु लै सब दृग सोभित महान।
सजि साज आज...
अमराइन में बौरै रसाल।
जनु लगी आग अनुराग लाल।
कुसुमित वन किंशुक सुमन लाल।
सजि साज आज...