पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६२८

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बद्रीनाथ सदा चिर जीवो, रहो नित युगल बहाल।
मो मन में अब आय बसो, करि दया सदा यहि चाल।

और चाल कौ


होली खेलत है वृजराज मिलि वृज कामिनी।
श्याम लिए पिचकारी कनककर, बरसावत रंग आवै।
इत सो चलति कुमकुमा कुंजनि, कुँजि रहयो संग साज।
स्वर कल कामिनी।
श्री बद्री नारायन जू कविराय फाग यह गावै।
नटवर रसिक सिरोमनि मोहन, जू मन मोहन काज।
अली गजगामिनी।

दूसरी


होली खेलत सुन्दर स्याम संग वृज भामिनी।
लाल गुलाल मलत हिल मिल अति युगल छटा अभिराम।
जनु घनदामिनी।
बद्रीनाथ गालियां गावत लै मोहन को नाम।
कुंजर गामिनी।

और चाल को


जोबना वैरी भयो कैसे दधि बेचन व्रज जांव।
या जोबना लखि को नहि मोहत याही डरन डेराव। अ
ति उतंग, छतियन पर छलकत, कैसे तिनहि छपांव।
औचक आन लगत छतियां नित मोहन जाको नांव।
अब नहि और उपाय सखी री तजियत गोकुल गांव।
नट नागर आगर गुनगागर फोरत हौं सकुचांव।
नहिं कछु सुनत करत निज मन की लाख भांति समुझांव।
लंगर डगर बिच करत ठिठौली मै वारी सरमांव।
बद्रीनाथ लेत मन बरबस करि करि लाखन दांव।