पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३३

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फेकहु कुमकुम कुचन पर गाल गुलाल मलाय, हहा! हरि होरी मैं।
यों कहि बरसावन लगी सब हरि ऊपर रंग, हहा! हरि होरी मैं।
कविवर बद्रीनाथ जू गावत पीये भंग, हहा! हरि होरी मैं।

दूसरी


ये अलियां चलि आज—अरी दिन होरी मैं।
बलि मिलिये ब्रजराज—अरी दिन होरी मैं॥
लै डफ बीन सुचंग—अरी दिन होरी मैं।
बाजत ढोल मृदङ्ग–अरी दिन होरी मैं॥
लै लै कर करताल—अरी दिन होरी मैं।
गावहु फाग रसाल—अरी दिन होरी मैं॥
पहिन सुरंगी चीर—अरी दिन होरी मैं।
कर लै वीर अबीर—अरी दिन होरी मैं॥
हिल मिल हरि संग खेलत—अरी दिन होरी मैं।
लाल भाल अरु गाल–अरी दिन होरी मैं॥
मीजहु लाल गुलाल—अरी दिन होरी मैं।
गाली देहु निशंक—अरी दिन होरी मैं॥
यथा राव तिमि रंक–अरी दिन होरी मैं।
गुरु जन की भय छोड़—अरी दिन होरी मैं॥
लोक लाज मुख मोड़—अरी दिन होरी मैं।
मुख चूमहु गर लाग–अरी दिन होरी मैं॥
काकी ऐसी भाग—अरी दिन होरी मैं।
प्यारी सखी सुजान—अरी दिन होरी मैं॥
भली नहीं यह बान—अरी दिन होरी मैं।
बैठी हौ करि मान—अरी दिन होरी मैं॥
नाहक ही हठ ठान–अरी दिन होरी मैं।
तोह हमारी सौंह–अरी दिन होरी मैं॥
जनि तानै जुग भौंह-अरी दिन होरी मैं।