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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३४

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लै अमराई मौर–अरी दिन होरी मैं॥
बागनि विहरत भौर—अरी दिन होरी मैं।
फूले ललित पलास—अरी दिन होरी मैं॥
मलयज बहत बतास—अरी दिन होरी मैं।
तासों करि यह काज-अरी दिन होरी मैं॥
बिहरहु संग बृज राज—अरी दिन होरी मैं।
गावत बद्रीनाथ—अरी दिन होरी मैं॥
राधा माधव गाथ—अरी दिन होरी मैं।

काफी


चित्त चोर सुचित्त ठगौरी॥टेक॥
नासा मोरि नचाय नैन सर भौहें जुगुल मरोरी॥
तानि कमान कान लगि छाड्यो चित्त पक्षिहि हतोरी॥
तापै अब मौन गहौरी॥
जब सों नैन बान उर लाग्यो तब तैं निडर भयो री॥
नहिं काहू के दिसि चितवत वह रूप अभिमान मतोरी॥
नेक दिसि वाके लखो री॥
इत कितने के जीव जात पर उत तौ होत ठगौरी॥
जो कोउ कहत मरत यह प्रेमी तौ कहै काह कहो री॥
कछू बस नाहि मेरो री॥
रूप अनूप दियो विधि ने तो मत अभिमान करोरी॥
बद्रीनाथ नेक नहि चितवहु प्रानै लेन चहौ री॥
राम सो नेक डरो री॥

दूसरी


मुरली धुन तान सुनाई रे।
मांगि लियो मेरो मन बरबस मन्द मधुर मुसकाई॥
चंचल चखनि चितौत तिरीछे चित चित चोर चुराई।
मैन हिय सैन बनाई।