पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३५

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वीर अबीर मल्यो मुख मेरे नटखट कर लगराई॥
श्री बद्री नारायन जू पिय कीनी अजब ढिठाई।
छैल छतियां सों लगाई॥

कान्हरे की होली


टुक या छवि देखन देरे एहो! सुघर संघाती मोहन।
नयनन डाल न लाल गुलाँलहि॥
हों तो रंगी हूं तेरे रंग में, कत नाहक मारत पिचकारी।
बद्री नारायन पिय मेरे या छबि

सिन्दूरा


होरी की यह लहर जहर, हमें बिन पिय जिय दुख दैय्या।


सीरी सरस समीर सखी री।
सनि सनि सौरभ सुख सरसैय्या॥
परसत तन उर उठत थहर।
हमें बिन...दुख दैय्या।
कुंज कछार कलिन्दी कूलनि।
कल कोकिल कूल कूजि कसैय्या।
काम करद सम करत कहर।
हमें विन...दुख दैय्या।
बन बागिन विहंगावलि बोलत।
बाजत विमल बसन्त बधैया।
पड़त कान सांचहुं सुख हर।
हमैं बिन पिय जिय दुख दैय्या।
बद्रीनाथ यार सों कहियो,
ए चित चोर सुचित्त चुरैय्या,
तेरी रहत सुधि आठो पहर।
हमें बिन...दैय्या।