पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३६

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राग मुल्तानी


कछु कही न जात री उनकी बात।
छलिया वह बद्रीनाथ यार भाज्यो नैन सर सैनन मार।
मृदु मन्द मधुर मुसक्यात।

राग कलिङ्गरा वा ललित


आये री होली के दिन नीके।
भरि अनुराग फाग चलि खेलहु संग प्यारे पर पी के॥
तजि कुल लोक लाज गुरजन भय करहु काज निज ही के॥
श्री बदरी नारायन मिलि सब कसक मिटावहु जी के॥

काफी


सैयां अरे गई चुरियां करक मोरी।
छोड़ो! हटो! चलो। जावो सरक॥टेक॥
लाल गुलाल मलत केसर रंग,
डाल भिजोवत सुरंग चुनरिया,
देखो रही यह छतिया धरक॥
मोरी सैयां॥
लूँगी छीन मुकुट मुरली जो,
ताने फिरत रहत पिचकरियां,
श्री बद्री नारायन भाषत
मद मनोज मतवारी गुजरिया,
गर लागत गई अगियां दरक।
मोरी सैयां॥

और चाल


सुन एरी बीर! बल बीर चीर रंग दीनो,
मारी पिचकारी छतियां तक, छपल मदन मद भीनो।

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