पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३७

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भाल गुलाल मलत मुख चूम्यो मन छलिया छलि छीनो॥
लाल जरीरन सो जकरी कछु कहि न जात जो कीनो।
बांकी बनक दिखाय हाय वह काम कला परवीनो॥
श्री बद्री नारायन जू पिय, सब सुध बुध हर लीनो॥

और चाल


सखियां औचक मोरी रे, उलझा गईं अखियां।
बिन देखे नहि चैन इन्हें, अब लाज संक सब छोरी रे।
मन्द मधुर मुसकाय लियो मन मोंहै जुगुल मरोरी रे।
बद्री नारायन वाकी छवि कैसे जाय कहो री॥

दीपचन्दी काफी


पिचकारी ब्रजराज दुलारे (हां हां) रंग बरसावत कर लै रे(लाला)
श्री बद्री नारायन गावत, सुख सरसावत मन दैरे मनहुँ मनोज
सरूप संवारे (हां हां हां)

धमार


आओ जी आओ जी बांके यार, कित जात चले भजि।
नोखे छैल बने घूमत हौ, गावत फिरत जो गारी॥
श्री बद्री नारायन जू पियं, अब परिहैं पिचकिन की मार॥

देस


चहुं ओरन होरी हो रही री।
खेलत अलि हिलि मिलि मन मोहन, संग वृषभान किशोरी।
चलियत कत नहि सज धज खेलन अब कत गहा करोरी॥
बद्रीनाथ दोऊ रंग राते, करत जुगुल चित बोरी।

होली सोहनीया भैरव


सुघर खेलार यार बन माली, बहकिन गाली गाओ।
लखि मुख टुक अपनो तब एहो, हम पर रंग बरसाओ॥