पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३८

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बालक एक अहीर दीन के, सुरपति सान जनाओ।
श्री बद्री नारायन हमसों बाद विवाद बढ़ाओ॥

(३७) होली सिन्दूरा


इन गलियन क्यों आवत हो जू, लाज शंक नहिं लावत हौ जू।
लै लै नाम हमारो गाली, बंसी बीच बजावत हौ जू॥
छैल अनोखे आप जानि जिय, जापै जोर जनावत हौ जू॥
लालन ग्वालन बाल लिये लखि, अलिन नवेलिन धावत हौ जू॥
बालन के भालन गालन मैं, लाल गुलाल लगावत हौ जू॥
पिचकारी छतियन तकि मारत, चोली चीर भिजावत हौ जू॥
गाय कबीर अहीरन के संग, निज कुल नाम नसावत हौ जू॥
पीपी भंग रंग सों रंग तन, डफ करताल बजावत हौ जू॥
ऊधम घूँघरि अधम अलौकिक, धूम धमार मचावत हौ जू॥
बेटा बाप बड़े के ह्वै क्यों कुलहि कलंक लगावत हौ जू॥
श्री बद्री नारायन जू फिर स्याम सुजान कहावत हौ जू॥

(३८)


क्यों यह ऐड दिखावत हौ जू, बादहि बैर बढ़ावत हौ जू॥
जै हो सीख स्याम सब दिन कों, काहे मन अकुलावत हौ जू॥
श्री बद्री नारायन जू जौ आज चले इत आवत हौ जू॥

(३९) ठुमरी


खेलत होली वृषभान संग लिये नवेली नागरियां।
सब मिलि मन मोहन पै डालत, भरि केसर रंग की गागरियां॥
कोऊ लै मुरली हरि की टेरत, कोऊ दै सिर सूही पागरियां॥
नारी बनाय बृजराज छबीली, छैल बनी गुन आगरियां॥
बद्री नारायन जू विहरत, इम सुन्दर रूप उजागरियां॥