पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४९

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आय डाल गयो, इन नैनन लाल गुलाल॥टेक॥
औचक रही जात जमुना तट मोहें मिल्यो नन्दलाल॥आली॰
वा मुसुक्यानि हँसनि बोलनि चितवनि चित चोरनि चाल॥आली॰
बद्रीनाथ लियो मन हिय लगि, मिसि होरी के ख्याल॥आली॰

सखी फाग के दिन आये! बन उपवन सुमन सुहाये॥टेक॥
बौरे रसाल रसीले! फूले पलास सजीले,
गहि आब गुलाब रंगीले! चित चंचरीक ललचाये॥
सखी फाग॰
कल कोकिल कूक सुनाई, जनु बजत मनोज बधाई।
मिलि पौन पराग सुहाई, बिरही बनिता बिलखाये॥
सखी फाग॰
मानी युवा युवती जन, मिलियै प्रियनि निज दै मन।
मानहुँ सिखावत छन छन, तरुवरनि लता लपटाये॥
सखी फाग॰
उड़े नभ गुलालन की छबि, छीट्यो ललित घन जनु रवि।
बदरी नारायन जू कवि, रचि राग फाग तब गाये॥
सखी फाग॰
ए हो छबीले छैला! अब तो रंग डालन दे रे॥टेक॥
दिन फागुन सरस सुहावन, होली हरख उपजावन
प्यारे बदरी नारायन! आवो लगि जाहु गले रे!!
ए हो छबीले छैला॰
सखी राधिका बनवारी रंग रंगे खेलत दोउ होरी॥टेक॥
स्यामा सखी संग लीने, रति की छटा जनु छीने
घन श्याम पैं बरसाई, कर लै लै रंग पिचकारी
सखी राधिका॰