पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५०

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बदरी नारायन जू कवि देखिये यह आज की छवि,
सब ग्वाल बाल मद माते, गावत कबीर औ गारी॥
सखी राधिका॰
मग रोकत बनवारी रे, पनियां कैसे जैये॥टेक॥
लगर डगर बिच रगर करत नित, आवत गावत गारी रे॥
बद्रीनारायन छतियां तक, मार भजत पिचकारी रे—पनियां॰


दोहे की होली
छन्द अष्टपदी


बिनती यह सुनि लीजिये मोहन मीत सुजान
ह हा! हरि होरी मैं॥
रसिक रसीले प्रान पिय जिय जनि गुनिये आन
ह हा! हरि होरी मैं॥
चल दल लसित द्रुमावली लतिका कुसुमित कुंज
ह हा! हरि होरी मैं॥
मदन महीपति सैन सम अलि अवलिन को गुंज
ह हा! हरि होरी मैं॥
बरस दिनन पर पाइयत भागनि यह त्योहार
ह हा! हरि होरी मैं॥
मदमाते युव युवति जन करति केलि व्योहार
ह हा! हरि होरी मैं॥
भरि उछाह तासो पिया प्यारे श्री ब्रजराज
ह हा! या होरी मैं॥
मुरली मुकुट दुराय अब साजो युवती-साज
ह हा! या होरी मैं॥