पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१०९

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गुप्त गोष्ठी गाथा

सायन्टिफ़िक (वैज्ञानिक) चर्चा चला देते हैं तो उनके चित्त को कुछ तरावट आ जाती और फिर वे ऐसी घुस पैठ की सम्मति देने लगते कि हम लोगों की बात उन्हें सात जन्म में भी न सूझे, और वे प्रसन्न होकर ताली बजा बजा कर हँसने लगते तब उनका समागम सचमुच सुखद हो जाता। वे छन छन पर पाकेट से घड़ी निकाल कर झाँका करते कि जिसमें ठीक समय पर टम्टम् पर चढ़ अपनी कोठी पर पहुँच जाय, नहीं तो उनकी मेम साहिबा उनको कच्चा ही खा जाँय, इसीलिए वे अकेले घण्टे डेढ़ घण्टे से अधिक कहीं नहीं ठहर सकते। इनसे बातें करने में प्रायः हम लोगों को कभी २ डर भी लगता, क्योंकि वे तनिक ही में मान हानि मानकर मुकदमा दायर करने को उद्यत हो, जाते, और यदि मेम साहिबा के साथ हुए, तब तो फिर मद्य की उन्मत्तता और क्रोध की तीव्रता उन्हें कोट और कमीज की ग्रास्तीन खिसकाने और लड़ जाने ही को उद्यत करा दिया करती। जब कभी आप के साथ आप की मेम साहिबा भी आती तब तो पूरा बखेड़ा करना पड़ता क्योंकि प्रथम तो उनको द्वार ही पर जाकर भागे से लेना, और फिर हाथ मिला कर घर में ले जाना चाहिए, आपके लिये कोई मुलाकात का कमरा भी होना आवश्यक है क्योंकि वे कभी आँगन बरामदे वा कोठरी में तो बैठती ही नहीं, इसलिए उनके लिए ड्राइङ्गरूम बनाकर सजाना पड़ता है। फिर अपने मित्र साहित्र की नाई तो हम लोग इनसे साधारण वस्त्र पहिन मिल नहीं सकते, जब तक कि पूर्ण परिच्छद वा मुलाकाती कपड़ा न पहिन लै। क्योंकि इनमें से एक बात में त्रुटि होने से हमारे मित्र ऐसे बिगड़ जाते कि सँभाले नहीं सँभलते, और कहते कि "हम अपनी मेम साहब का बेइजती नहीं सहने सकता ज़रूर तुमारा ऊपर मान हानि का मुकद्दमा लायेगा"। इनके लियेचाय, सोडावाटर या लेमनेड, बरफ इत्यादि का सत्कार भी करना ही पड़ता, किन्तु जब वे यह कहतों कि-'हम आपको मेम साहब से मिलने माँगटा है," तब अवश्य सब की नाड़ी सुस्त पड़ जाती, क्योंकि उनका यह सिद्धान्त है कि यहाँ की स्त्रियों में पश्चिमीय सभ्यता फैले। जिसकी बानगी हम लोग नित्य अपने मित्र ही के यहाँ देखकर चकित हो रहे हैं। हमारे मित्र इसी शोच में डूबते उतराते रहते कि इस देश की उन्नति कैसे होगी, इसलिये कि न तो लोग कुछ सामाजिक उन्नति करते न राजनैतिक मामलों में कुछ इन्टरेस्ट लेते, न लोग शीघ्रता से विलायत जाते, क्योंकि जब तक कि हमारे देश के