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बनारस का बुढ़वा मंगल


अस्तु अब नई ही कथा सुनिये, इस बार भी मैं न मेला देखने वरच केवल वल्लभकुल के अनेक गोस्वामिस्वरूपों, विशषतः काँकरौली के श्री मन्महाराज टिकैत श्री गोस्वामी श्री बालकृष्ण लाल जी महाराज के दर्शनार्थ ही गया था। क्योंकि श्रीमान् के अनेक गुणगण श्रवण कर, कई वर्षों से चितमें उनके चरण दर्शन की अति उत्तएटा उत्पन्न हुई थी, और उनके अनेक दिनों से श्री काशी में विराजमान होने पर भी यह उग्र अभिलापान सफल हो सकी थी। इधर बुढ़वा मंगल के दिन भी आये, और उधर एक मित्र का पत्र भी पाया, कि काँकरौली के महाराज भी इस बार मङ्गल कराते हैं जिस कारण और भी अन्य कई गोस्वामि स्वरूप यहीं विराज मान है। यदि इस अवसर पर भी आप न आए तो निश्चय पूरे अभागे समझे जाइएगा। मैने इसे सच समझ सोचा कि चलो इस अवसर पर न एक वरञ्च अनेक गोस्वामि महाराज के वृन्द का दर्शन होगा, बुढ़वा मङ्गल का मेला भी जिसे केवल अब बुढ़वा जान निःसार समझ लिया है, देखें तो इस बार कुछ मनोहरला का प्रदर्शन कर पाता है? क्योंकि जिनके चेलों की आनन्द गोष्ठी का आनन्द पाकर चित्तं अपनी ऐसी सम्मति स्थिर किये हैं उनके गुरुओं के इस सुबहत समारम्भ की शोभा देख लेनी भी परभावश्यक है। विशेषतः मुख्य रूप से जिस रूप का दर्शन हमें इष्ट है, उसकी इस अवसर की झाँकी देखनी भी मुख्यतर है।

निदान यह विचार उठा और स्टेशन पहुँचा, हमारे नगर[१] के लोग भी तो अदभुत बेफिक्र है, प्लेटफार्म पर एक चुना मेला सा लगा मिला नये उमङ्ग के लोग बाग़बाग़ से टहलते दिखाई देने लगे, भाँति भाँति के स्वरूपों, पर भाँति भाँति की लालसाएँ लहकतीं कोई किसी को तकते तो कोई किसी से बहक बहक कर बातें करते, कोई किसी से नया साथ जोड़ते, तो कोई किसी का बन्धा संग छोड़ते और नया मेल मिलाने की चिन्ता ही में थे, कि मेल ट्रेन आ धमकी लोग लगे धमाधम गठड़ियाँ पटकने अपने भीत्रट पट टिकट ले ज्योंही गाड़ी के निकट पहुँचे कि एक और ही विकट साथ मिला जिसने सबका संग छड़ाया। अस्तु गाड़ी पर चढ़े, पहाड़ी पहुँचे, चुनार छुटा वह भन् हरि का गढ़ भागा सा चला जारहा है, वह नारायनपुर गया और यह मुग़लसराय पहुँचे।


  1. मिर्जापूर १ से ४ तक के नाम सब मिर्जापुर से बनारस जाने के मार्ग के स्टेशन हैं। × यह चुनार से होती हुई विन्धयागिरि की श्रेणी है।