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प्रेमघन सर्वस्व

एक लालटेन बीच में रक्खे बिसात बिछाये, शतरऊज के मुहरों के कटने के स्ञ्ज में डूबें रात काटे डालते। तो कोई ताश के पन्ने अपने प्रारब्ध के पत्रे से उलट रहे है। कोई गनीमत का मौका हाथ पाया देख अचाञ्चक अपने यार वफादार को पाकर किसी अकेली किश्ती के कोने में एक एक्के की ज्योति में उस दिलबर के नूरानी मसहफ़े रुखसार को कुरान शरीफ़ के समान ध्यान लगाये सानो पढ़ रहा है, और उसके हर खतों खाल पर गुलिस्तां और वोस्तां को बार फेर कर फेंकता, शेष संसार को निस्तार जान मेले से भागता, भगवान की विलक्षण रचना चातुरी के पहचानने में अस मर्थ हो तनमय दशा को प्राप्त हो रहा है, जिसकी आँखों में यह मेला केवल एक निर्जन बन के साश्व रखता है। कहीं सिलकर लोड़ियाँ बजती और किसी डाँगी पर बूटी छनती, कहीं गाँजे की दस लगती और तान उड़ती है। कहीं होली से जलते भद्दे पर छनाछन पूरियों निकालते "गरमागरम कचौड़ी मसालेदार" चिल्लाते धुआँ धकड़ मचाते, हलबाई लोग अपनी दूकान की नौकायें बढ़ाते चले जाते, और भूखे परदेशी मेला देखनेवाले शिकारी कुत्ते के समान अपनी नौका दौड़ाये लपक रहे है। कहीं बनारसी गुरडे और अक्खड़ों की बोली टोलियाँ उड़ती—क्या सिंघा?—"अचूका तो राजा"—"और कैसन वल जात होवः"—"कहाँ तोहरे नाव के तो कहर भिड़ोले चलल आवत हंई।" रंग है मझर इतो मारी भर्राटे के आज छेडल्यः। कहीं कोई चिल्लाता कि "तनिक रोकले रहा होः। नाव बढ़ जायद्यः"—"अरे काहे झुरै नाव नाब चिचिवायेल्यः बच्चू अहिये जहाँ चार डांड़ कसलों कि पल्ले पार कै दिहल"

देखत है अः कि नाही वे रङ्ग बोलों बोलत डांगी सटौले चलल आवत बा सूझतन ई नाहीं जनते कि हमन बड़े बड़े गुण्डन के चेहरा बिगाड़ दिहले हहै।" किसी नाथ पर रंडियाँ विविध भाय बतला-बतला कर गा रहीं है—

चलो भखरे, मलिया की अगियों की रामा।
फुलया में बीनी हो भरल्यूं चगेरिया होगमा
श्राइ गयलो रे मलिया रखवरवा हो रामा॰
बस इसका बना भाव जिसने देखा वही जाने अथया—

नैना मार के ही देख ना पउलिउँ हो रामा"—तोरे करनयाँ होवै जोगिनियाँ हो रामा