पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१८

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ने, भजन की प्रणाली का रूप नहीं ग्रहण किया वरञ्च उनकी विशेषता मधुर बाणी द्वारा भावोपदेशों के व्यक्त करने की प्रणाली का गहन करना है।

प्रेमधन जी ने एक और तो अपने साहित्य में हिन्दू धर्म के आडम्बरों, तथा अनाचारों की कटु आलोचना की, तो दूसरी ओर हिन्दूधर्म को नवीन विचारों की ओर अग्रसर कर, नवीन उन्नतिमय मार्ग का प्रदर्शन कराया.—जिसके फल स्वरूप प्रेमघन जी के साहित्य में सामाजिक लेखों की विशेष प्रधानता दिखाई पड़ती है। प्रेमघनजी सामाजिक भावनाओं को कितने स्पष्ट रूप में व्यक्त करते है:—"आप यदि हमारे पश्चिमीय विद्या विशारद नवीन ज्योतिधारी युवक समूह चमकीले पीतल के झूठे गहने और भड़कीले गिलट के बरतनों के समान केवल ऊपरी तड़प झड़प रखने वाली पश्चिमीय सभ्यता पर मोहित न हो, आपने वास्तविक सदाचार के सच्चे सुनहरे और जड़ाऊ गहने जिन पर मूर्खता की मैल जम गई है देकर उसे मोल न लेते, वे इस प्राचीन प्रसाद तुल्य समाज का संस्कार झाड़ पौंछ मरम्मत वा चूना कलई करने के बदले गिरा कर एक नया फूस का अंगरेजी बंगला बनाने के अर्थ न विह्वल होते। यदि वे भारत को यूरप न बना कर केवल वहाँ के उचम विषयों के समूह से इसकी शोभा वृद्धि करने मात्र का मनसूबा रखते, यदि वे स्वयंम् क्रिस्तान वा म्लेच्छाचारी न बन उन्हे केवल उत्तम गुणों ही से सुसम्पन्न हो आत्मोन्नति के लोलुप लखाई पड़ते, यदि वे अपने समाज में मिले हुए स्पष्ट और प्रकाश भाव से आन्दोलन कर उसे आगे न बढ़ाने के अर्थ वद्धपरिकर दिखाते, स्वयंम् उसे छोड़ अलग होने को यदि वे इस नौका की पतवार बन पीछे से उचित मार्ग से से चलने के अर्थ उद्यागी होते, तो अवश्यमावश्य इसकी दशा शीघ्र ही प्रशसनीय होती, परन्तु वे तो उसे छोड़ अपनी और उसकी दोनों की दुशा ही को अपनी इति कर्वव्यता मानते हैं, वे नहीं चाहते कि हम अपने उद्योग से इस पुरानी वाटिका के कटक निकाल प्राचीन फूल फल वाले वृक्षों को गोंड और सोंच कर तथा नवीच उत्तमोत्तम वृक्षों से भी इसे युक्त करे, वरच एक साथ सबको काटकर केवल दूब लगा कर एक रंग हरा कर दिखलाये जैसे कि स्वाभाविक सब भूमि हरी है। ठीक यही दशा आजकल के भारतीय समाज संस्कार वा धर्म सस्कार व्यक्ति और समाजों की भी है, जो वास्तव में देश की रही सही सम्पत्ति आर्य मर्यादा और कायरता चिन्ह चक्र को भी मिटा देगी।" तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक परिस्थितियों का प्रेमघनजी के काव्य में जैसा समुचित चित्रत हुआ है, वैसा ही तत्काल