पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२१७

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विधवा विपत्ति वर्षा


जबसे इस देश के अधिकार का भार व्रिटिश शासन ने अपने ऊपर लिया प्रकाश्यतः पूर्वोक्त अंधकार से सचमुच संसार शून्य दिखाई देने लगा, परंतु खेद की बात है कि बहुतेरे पर्वत के दर्राओं के तुल्य यहाँ के उत्तम कुल वाले शिष्ट और महापुरुषों के आगार में (जो हम दीन अबलाओं के हेतु कारागार से भी अधिक अधिक है, निराधार कोटिश; बालविधवायें विचारी जो नाना प्रकार की नई नई यन्त्रणा से मारी जाती, प्रतिक्षण जिनको कठिन कष्ट के संग कल्प तुल्य व्यतीत होता है) अन्याय के अंधकार का अधिकार बना है। तो अब इस अवसर को जिसे उस सूर्य के प्रकाश का मध्याह्न कहना चाहिये, यदि कुछ उसमें न्यूनता न हुई तो सिवाय बिष घूंटने के इस निर्वलम्बा अबलाओं के जिनके कि नाकों दम और होठों पर प्राण आ गया है, दुसरा दुःख की अधिकाई से मुक्त होने के लिये दूसरा और कौन चारा है। यद्यपि हम लोगों को न एक किन्तु ईश्वरीय अकृपा से भी गले के हार बनाये गये, परंतु यहीं अर्थात् न स्वर्ग और न पाताल किन्तु इसी पृथ्वी के यूरप और भारत ही में दिन और रात्रि का सा अंतर हो गया है, और और देशों की स्त्रियों को कोई विपत्ति बाधा नहीं करता क्योंकि अबला नाम तो केवल इसी पापभूमी की स्त्रियों के लिये यहाँ की भाषा में है, अतएव यूरप, देश की, सो भी स्त्री जाति को, महारानी[१] के राज्य में, भी यदि हम दुखियाये दुःख से दूर न की गई तो फिर क्या:—"खाक इंसाफ है खुदाई में"! तो भारतीय बालिकाओं के करुणास्पद दुःख मय इतिहास के अवलोकन से यह ज्ञात होता है कि एक समय में यहाँ की बालिकायें जन्मते ही मार डाली जाती थीं। चाहे इसके कारण दुष्ट यवन हो क्यों न रहे हो, पर तो भी अवश्य बह रीति हम लोगों के अर्थ इतनी दयनीय न थी, कारण यह कि वह दुःख हमें ऐसी अवस्था में प्राप्त होता या जब हमें दुःख के नाम का भी ज्ञान न था। एक ही बार में पल्ले पार हो नित्य के नये नये दुखड़ों के झेलने से बचकर मानो हमें वह एक प्रकार के सुख का कारण था।


  1. महारानी विक्टोरिया।

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