पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(१२)


व्यक्तिगत लेखों के अन्तर्गत प्रेमधन जी के बनारस का बुढ़वा मंगल गुप्त गोष्टी गाथा दिल्ली दरबार में मित्र मंडली के यार प्रमुख हैं जिनके परिचय की आवश्यकता उनके समझने के लिए परम आवश्यक है।

बनारस का बुढ़वा मंगल

इसमें प्रेमघनजी ने बनारस के प्राचीन लगभग आज से सौ डेढ़ वर्ष पूर्व बनारस के बुढ़वा महादेव के विवाह में फाल्गुन मास के अन्त में उनके विवाह के उपलक्ष में जो उत्सव मनाया जाता था उसका वर्णन किया है। इस मेले में नृत्य, गान और उत्सव के उपलक्ष राजघाट से अस्सी घाट तक नावों के बजरे पाटे जाते थे, उसी पर नृत्य गान की छटा रहती थी। बनारस तथा आस पास के सम्भ्रान्त रईसों की अपनी अपनी अलग नौकार्य रहती थीं और साधारण वर्ग के भी लोग अपने शक्त्यानुसार नावें सजाते थे, और मेले में अपना उत्साह दिखाते थे। प्रेमघन जी के शब्दों में बुढ़वा मंगल की परिधि और छटा इस प्रकार है।

"यों तो अब भी राजघाट से अस्सी तक उसी भाँति सजी धजी सहस्राविधि नौकायें दृष्टिगोचर होती हैं पर प्रायः...मोसला घाट पर स्थित...वह नौका जिसकी लाल पताका फहराती हुई "मंगलायतनो हरिः" पुकारती थीं। कहाँ हैं ...सुन्दर सुसज्जित उस विशाल नौका पर बीसों तायफों का जमघट जिसमें न केवल रंडिया ही; परन माँड़ और कथक तथा अन्य अनेक प्रकार .. के गुणियों का संग्रह रहता कि जिसमें कोई भी काटने वा छाँटने योग्य नहीं जो खड़ा हुश्शा बस सब के मन को अपने हाथ में लिया। यदि किसी वस्त्रविलासिनी की रूप राशि और सौकुमार्य मन को विह्वल करती, तो किसी के यौवन की शोभा और हाव भाव कटाक्षादि को चूर्ण करने में समर्थ, यदि किसी का गाना कहर का, तो, दूसरे का बताना जहर का असर रखता। यों ही किसी के नाच की गति देख मन की और ही गति होती, और प्रत्येक तोड़े दिल-दर्पन को तोड़े डालते थे।

किश्ती के कोने से नालों[१] की नदी बहती, कहीं लोग कुरंग कटाक्षों की चोट से लहालोट तो कोई प्रेम के प्याले से लोट पोट, कोई गुणी रसिक जो रस में डूबता, तो कोई प्रेमो जीवनाशा से था, और शेष टकटकी लगाये वाह वाह की रट लाये, सुध बुध गँवाये, लिखित चित्र में स्थित हैं।"


  1. प्रेमोच्छृवास से।