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देश के अग्रसर और समाचार पत्रों के सम्पादक

रहा है, जो कुछ दशा में परिवर्तन हो रहा है, उससे उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि वे इस विषय में निस्पृह हैं। आज उनके विषय में हमें कछ नहीं कहना है, आज केवल उन सत्पुरुषों के विषय में कहना है जो आप सेनाप देषोपकारक बने हैं, देश की दशा सुधारने, इसके दुःखों को मिटाने पर तत्पर हुये हैं, और राजा और प्रजा के एक उत्तम बा निकृष्ट प्रकार के बिचवई व मध्यस्थ है। इनमें समाचार पत्रों के सम्पादक मुख्य है, क्योंकि इनके उद्योग से बहुत कुछ सुधार सम्भव हो सकता है, विलायती देशों में तो इनका प्रभाव इतना बढ़ गया है कि इनके बिना उनका निर्वाह होना कठिन है। परन्तु इस अभागे देश में अभी वह बातें बहुत दूर है, अभी समाचार पत्रों की दशा बहुत ही खेदजनक है। लोगों की रुचि इस ओर हर्ड नहीं है। जो समर्थवान हैं और जिनकी सहानुभूति ऐसे उत्तम कार्य में होना आवश्यक है उनकी कृपा-दृष्टि उनके ओर है जो उन्हें बेढंगी बातें सनाते और उनकी नींव खोदते कुछ भी नहीं हिचकते; हिन्दी समाचार पत्रों के सम्पादकों में भी मेल और अन्योन्य सहायता की कुछ चिन्ता नहीं है। एक कछ कहता तो दूसरा कुछ, एक विषय अवश्य ऐसा है कि जिसमें प्रायः बहत से एक मत हैं और वह यह है कि देश के नवयुवकों और विशेष कर अंगरेजी विद्या के विद्वानों पर नितान्त रुष्ट हो दोषारोपण करना। उनकी छोटी भलों पर निर्दय कुटिल बचनों से भरी पंक्तियाँ लिखना, क्या सचमुच हमारे देश के युवक निन्दनीय हैं? क्या देश की ऐसी दीन दशा उन्हीं के द्वारा हई है? कोई कहता है कि इन्हीं सबों ने कांग्रेस कर इन दश वर्षों में जितना धन खोया उससे बहुत कुछ देश की उन्नति हो सकती थी। हमारे देश के धनिक जितना धन अपनी व्यर्थ क्रीड़ाओं और अकारण उत्सवों में तथा अधिकारियों के सत्कार और उनके प्रसन्न रखने के अर्थ नाना उपायों में व्यय करते हैं उससे तो थोड़े ही दिनों में बहुत कुछ उन्नति देश की हो सकती है, परन्तु उनको रोकने वाला और कहने वाला कोई नहीं देख पड़ता। एक ऐसे कार्ग में जिसका गूढता गुरुता अभी पूर्वोक्त कहने वालों को नहीं समझ पड़ती, भविष्य में जिसका प्रबल प्रभाव निश्चय मानना होगा उसके अर्थ, व्यर्थ धन फैकने को कहना विचित्र दिल्लगी समझ पड़ती है। कोई-कोई यह भी कहते हैं कि नवयुवकों ने जितना उत्साह कांग्रेस करने के अर्थ दिखाया है और जो परिश्रम कि उन लोगों ने इसके निमित्त किया है उसका फल लाभ यही है कि वर्ष भर में चार दिन गला फाड़ कर घोर रब से निर्भीक हो चिल्लाने