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प्रेमघन सर्वस्व

का अवसर उन्हें मिलता है; यदि वह देश के व्यापार के निमित्त इतना ही परिश्रम करते तो बहुत कुछ उत्तम परिणाम उसका हो सकता था, नहीं तो केवल राजनैतिक विषयों के पीछे फकीर हो रहे हैं जिसका सुनने वाला भी कोई नहीं है। कांग्रेस करने के अर्थ जो इतनी दूर दूर से लोग आते हैं उनके उद्देश्य ही कुछ और हैं, उन्हें देश के और विषयों से प्रयोजन नहीं है, उन्हें केवल देश को दशा दिखाने, कर्मचारियों की भूलों पर यथार्थ आलोचना करने और गवर्नमेण्ट से देश के विज्ञों पर विशेष कार्य का भार दिलबाने और प्रजा निर्वाचित महासभा की प्रार्थनाओं को देश की यथोचित प्रार्थना जानने और उसके अधिक अधिकार प्राप्त करने से प्रयोजन है। उन्हें यह निश्चय हो गया है कि जब तक एक ऐसी सभा को अधिकार प्रात न होगा तब तक देश की दशा सुधरनी कठिन है। वह यह जानते हैं कि कर्मचारी सिविलियन इतने योग्य होने पर भी विदेशी ही हैं। देश के प्राभ्यन्तरिक हानि लाभ से वास्तविक में उन्हें वैसा प्रयोजन नहीं है जैसा कि एक देशी को हो सकता है उन्हें अपने नैमित्तिक कार्यों से प्रयोजन है। देश में शान्ति रखना और गवर्नमेण्ट की आय के बढ़ाने का प्रयत्न करना ही अपना परम धर्म और कर्तव्य मानना उनका काम है। भाड़े पर रक्खे हए विदेशी कार्यकर्ता पृथ्वी मात्र में ऐसा ही करते हैं। यही स्वाभाविक भी है। विशेष राग जन्म भूमि ही से हो सकती है। जहाँ रहना नहीं है वहाँ के विशेष विषयों से प्रयोजन ही क्या है यह विचारने पर यदि इस विषय की चेष्टा की जाय, कि कार्यकर्ताओं का विशेष ध्यान देश की कुदशा की ओर खींचा जाय और इसका प्रयत्न भी साथ ही साथ हो कि वे एक ऐसी महासभा को विशेष आदर से देखें और अन्त को उसे राजनैतिक अधिकारों से उसकी योग्यता देख भविष्य में भूषित करैं तो क्या यह उद्योग सराहनीय नहीं है। क्या इससे वह बातें साध्य न होंगी जिनके अभाव से लोग छटपटा कर अपनी वेकली दिखाते और अधभरे घड़े से छलकते और जो किसी प्रकार कुछ कर रहे हैं उन्हीं पर अपनी जीभ की चोखी छुरी चलाते।

फिर कांग्रेस प्रतिनिधियों पर यह दोषारोपण करना कि वह देश के व्यापार की ओर ध्यान नहीं देते इस कारण से व्यर्थ है कि वह अपना अपना व्यय कर वर्ष में एक बार एक स्थान को जा सकते हैं, यद्यपि इतना भी धन खोना उन्हें कठिन है और इसी के संकोच से बहुतेरे कई बार नहीं भी जा सकते, परन्तु इतना तक उनका किया साध्य हो सकता है, विशेष करना उनके